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शुक्र हैं आज शुक्रवार हैं-एक माँ की सोच

एक समय था जब शुक्रवार की कभी परवाह नहीं थी। सब दिन एक से ही लगते थे। बल्कि संडे ही कभी बोर हो जाया करता था कि क्या करें? उस समय स्कूल और ऑफिस ६ दिन के हुआ करते थे। यह ५ वर्किंग डे का चलन तो कुछ सालों पहले ही शुरू हुआ हैं। मुझे… Read More शुक्र हैं आज शुक्रवार हैं-एक माँ की सोच

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माँ- फ्री हो कर फ़ोन करती हू!

सुबह के 5 बज रहे थे, और सीमा का अलार्म लगातार बजता जा रहा था | फिर उसका हाथ उस पर पड़ा और वो बजना बंद हुआ | सीमा के लिए सुबह उठना रोज़ का काम था | सुबह का खाना बनाना, बच्चों को स्कूल भेजना, पति का टिफ़िन और फिर अपने भी ऑफिस के… Read More माँ- फ्री हो कर फ़ोन करती हू!

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हाउसवाइफ-एक सम्मानित पद!

रीता बहुत खुश थी आखिर इतने सालों में वह अपने पुराने दोस्तों से मिल रही थी। उनसे मिलने का जोश ही अलग होता हैं। जैसे ही वह  पहुंची सारी सहेलियों का ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। फिर हाल चाल जानने का सिलसिला शुरू हुआ। कोई किसी स्कूल में प्रिंसिपल और कोई किसी ऑफिस में मैनेजर।… Read More हाउसवाइफ-एक सम्मानित पद!

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अपने को उभार ले बस अब वक़्त हैं तेरा (कविता)

यह कविता उन सभी की लिए जो कही ना कही अपने ज़िन्दगी में रुक गए हैं। शायद ज़िम्मेदारियों के बोझ तले या समाज के दायरे में फसे। बस अब यही कहूंगी बढ़े चलो बढ़े चलो कौन कहता हैं दिल को समेट लो ख्वाइशें और भी हैं दिल में इनको भी उभरने दो किरदार बहुत निभा लिए… Read More अपने को उभार ले बस अब वक़्त हैं तेरा (कविता)