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हाउसवाइफ-एक सम्मानित पद!

रीता बहुत खुश थी आखिर इतने सालों में वह अपने पुराने दोस्तों से मिल रही थी। उनसे मिलने का जोश ही अलग होता हैं। जैसे ही वह  पहुंची सारी सहेलियों का ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। फिर हाल चाल जानने का सिलसिला शुरू हुआ। कोई किसी स्कूल में प्रिंसिपल और कोई किसी ऑफिस में मैनेजर। जब रीता की बारी आयी तो उसने बहुत ही मंदी आवाज़ में बोला ,” मैं सिर्फ एक हाउसवाइफ हूँ” मैंने और कुछ नहीं किया। और यह कहकर उसको बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसको लगा शायद वह अपनी ज़िंदगी में सफल नहीं हैं। अपनी सहेलियों की ऊंचे ओहदे को देख कर वह सहम गयी। कुछ ही पलों में उसको लगने लगा उसने सिर्फ घर ही संभाला हैं और वह किसी काम की नहीं”

ऐसे ख्याल आने बहुत मामूली सी बात है , हर किसी की मन में आते हैं। चाहे वह कोई भी हो ? घर की महिला को अभी भी अपनी अस्तिव की लड़ाई सी मुक्ति नहीं मिली हैं।

एक ज़माना था जब समाज के सारे कार्यो का विभाजन होता था। घर के सारे काम एक महिला और बाहर के सारे कार्य पुरुष किया करते थे। ना काम की बंटवारे को लेकर को झड़प या मुद्दा। सब अपने काम करके खुश रहते थे। या फिर यह कहे कि तरक्की करते -करते आज सारे कार्यो का असर या ज़िम्मेदारी सब पर आ गयी हैं। इतने सारी मशीन आ गयी पर काम हैं जो कम होने के बजाये बढ़ता चला जाता है। हम पहले से भी ज्यादा व्यस्त हो गए हैं। फुर्सत शब्द ही कहीं खो गया हैं। और उसको खोजने के लिए हम और व्यस्त हो जाते हैं।

खैर, वक़्त का तकाजा हैं।हर कोई बिजी हैं और शायद सबसे ज्यादा बिजी रहने वालों में एक नाम ” हाउसवाइफ” का भी आता हैं। हाँ , आधुनिक ज़माना हैं , हर स्त्री भी पुरुष के साथ कदम से कदम मिला कर चलती है। यह देखकर अच्छा लगता हैं कि आजकल कोई भी कार्य सिर्फ पुरुष या स्त्री होने से विभाजित नहीं हैं। यह सराहनीय हैं कैसे किस तरह एक महिला अपना ऑफिस और घर बखूबी संभालती हैं।

पर अक्सर इस रेस में एक हाउसवाइफ को यह लगता हैं की वह बहुत पीछे रह गयी। उसको यह लगता हैं की ज़माना कहाँ निकल गया और हम यही घर पर ही रह गयी। कुछ महिलायें जो खुद अपनी पसंद से घर सँभालने की ज़िम्मेदारी लेती हैं या मज़बूरी में। दोनों ही हालातो में वह अपने काम सी कभी मुँह नहीं मोड़ती। शायद ही ऐसा होता होगा की वह दुसरो की ज़रूरतों को बिलकुल नज़रअंदाज़ कर दे । पर हाउसवाइफ को फिर भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती हैं। बार -बार उसको यह जताना होता है की वह भी उन्हीं लोगों की तरह है जो घर से बहार निकलते हैं।

लोग क्यों भूल जाते हैं कि वह भी एक सम्मानित दर्जा हैं जो किसी भी तरह से कुछ कम नहीं हैं। हो सकता है कोई ऐसी रिसर्च का इंतज़ार हो जिसमे यह बताया गया हो की होममेकर्स किसी भी देश की जीडीपी ग्रोथ के लिए कैसे लाभकारी हैं। बाकि लोगों को शायद घडी के अलार्म को आगे बढ़ाने की छूठ हो पर इनको नहीं। करके देखिये एक दिन, पूरी दिनचर्या अस्त व्यस्त हो जायेगी।

एक व्यक्ति बीमार पड़ जाए और ऑफिस ना जा पाए थो ऑफिस का कुछ नहीं होता पर अगर एक महिला बीमार पड़ जाए तो पूरे घर में भूचाल आ जाता हैं। एक दिन अगर उसने टाइम पर आपके कपडे इस्त्री करनी नहीं दिए थो आप अगले दिन परेशान हो जाते हैं। बच्चों को पढाने से लेकर घर के देख रेख क्या नहीं करती। बस वह काम दिखता नहीं हैं और महीने की आखिर में उनका बैंक अकाउंट क्रेडिट नहीं होता। मैं ऐसी बहुत सी महिलाओ को जानती हूँ जो क्या नहीं करती , सुबह से शाम तक हर जगह दौड़ती रहती हैं। हाँ ,वह सशक्त महिलाये हैं पर दुसरो के लिए काम करना के कारण उनको किसी से कम नहीं आंकना चाहिए। समाज अब भी उनको “सिर्फ एक हाउसवाइफ” की तरह ही देखता हैं और कितनी आसानी सी उनका योगदान नकारता हैं।

पर मेरा यही कहना हैं , आप सशक्त हैं और आप भी उतना ही सम्मानित पद पर हैं जिसमे बाकी। बस फर्क इतना कि आप यह सारे काम सिर्फ प्यार के लिए करती हैं जिसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता जो अपने आप में ही काफी ऊँचा हैं। आपको भी पूरा हक़ हैं अपने हिसाब से अपने ऊपर समय और पैसा व्यतीत करने का, और पूरी आदर -सत्कार पाने का। हाउसवाइफ होने से कोई किसी को सिर्फ इसलिए नहीं नीचे दिखा सकता या यह कह सकता है कि आप करते क्या हो दिनभर?इसलिए अपने पद की आप भी रेस्पेक्ट लीजिये और गर्व से कहिये मैं हाउसवाइफ हूँ।

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